Monday, March 5, 2012

Dr. Vishwas Kumar's poem

 

पनाहों  में  जो  आया  हो  तो  उस  पर  वार  क्या  करना | 
जो  दिल  हारा  हुआ  हो  उस पर  फिर  अधिकार  क्या  करना 
 
मोहब्बत  का  मज़ा  तो  डूबने  की  कशमकश  में  हैं 
जो   हो  मालूम  गहराई   तो  दरिया  पार  क्या  करना 
हमारे  शेर  सुन  कर  के  भी  जो  खामोश  इतना  है .
खुदा  जाने  गुरुर -ए-हुस्न  में  मदहोश  कितना  है
 
किसी  प्याले  से  पूंछा   हैं  सुराही  ने   सबब  मैका
जो  खुद  बेहोश  हो  वो  क्या  बताये  होश  कितना  हैं

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